Saturday, September 22, 2012

धोखा है सप्लाई कोड और परफॉर्मेंस ड्राफ्ट : Navbharat Times

नई दिल्ली।। बिजली कंपनियों की क्वॉलिटी तय करने के लिए दिल्ली इलैक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमिशन (डीईआरसी) के सप्लाई कोड और परफॉर्मेंस स्टैंडर्ड ड्राफ्ट को आरडब्ल्यूए ने कंस्यूमर के साथ छलावा बताया है। ड्राफ्ट पर पब्लिक हेयरिंग के दौरान आरडब्ल्यूए ने डीईआरसी को घेरा और उनके सवालों के जवाब डीईआरसी के पास भी नहीं थे। उनका कहना है कि कंपनियों की कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई है और न ही इसका इंतजाम किया है कि कंस्यूमर को नुकसान हो तो उसकी भरपाई कैसे हो?

बिना इंट्रो और बिना मकसद का ड्राफ्ट : वसंत कुंज आरडब्ल्यूए के अनिल सूद ने कहा कि हर रेगुलेशन का एक मकसद होता है, जिसे इंट्रो में बताया जाता है, लेकिन इस ड्राफ्ट का मकसद स्पष्ट नहीं किया गया है। इससे पहले 2007 में रेगुलेशन लाया गया था, जिसे कभी लागू नहीं किया गया।

कंस्यूमर की जिम्मेदारी तय पर डिस्कॉम को छूट : जीके 1 आरडब्ल्यूए के राजीव काकरिया के मुताबिक ड्राफ्ट में कहा गया है कि कनेक्शन देते वक्त वायरिंग की जांच की जाएगी। अगर कुछ डिफेक्ट है तो कंस्यूमर को नोटिस दिया जाएगा और उसके ठीक होने पर ही कनेक्शन मिलेगा। लेकिन इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि रेसिडियल बैक फ्लो की वजह से ज्यादा बिल आता है, उसे कैसे सुधारा जाएगा? हर मीटर तक सेपरेट न्यूट्रल न देने की वजह से ग्राहकों से 25 से 40 पर्सेंट एक्स्ट्रा बिल वसूला जा रहा है। ड्राफ्ट में जिक्र नहीं है कि कंस्यूमर्स को जो नुकसान हुआ है, उसे बिजली कंपनियां कैसे भरेंगी? 

बिजली कंपनियों पर शिकंजा नहीं : ड्राफ्ट में कहा गया है कि वोल्टेज की शिकायत होने पर इसे सुधारने के लिए जरूरी एक्शन लिया जाएगा। लेकिन ऐसा न होने पर कोई पेनाल्टी नहीं लगाई गई है। ईस्ट दिल्ली आरडब्ल्यूए के बी. एस. वोहरा ने कहा कि प्राइवेटाइजेशन का मकसद था कि ग्राहकों को स्टेबल पावर मिले। लेकिन हर कंस्यूमर को साल में 15 हजार रुपये इनवर्टर पर खर्च करना होता है और स्टेबलाइजर लगाना मजबूरी है। वोल्टेज फ्लक्चुएशन होने पर टीवी, फ्रिज, कंप्यूटर, बल्ब जैसे आइटम फुंकते हैं। इसकी भरपाई कैसे होगी, परफॉर्मेस स्टैंडर्ड में इसका भी जिक्र नहीं है।

कॉपी कैट डीईआरसी : अनिल सूद ने कहा कि डीईआरसी ने रेगुलेशन बनाते वक्त यह भी नहीं देखा कि वह 2007 के रेगुलेशन से कॉपी कर रहे हैं और डेट भी चेंज नहीं की। पेनल्टी के प्रावधान वाले कॉलम में पेज 88 पर सप्लाई कोड 2007 ही कॉपी कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि जब बिजली की दरें तीन गुना बढ़ गई हैं तो बिजली कंपनियों पर पेनल्टी पांच साल पुराने हिसाब से लगाने का कोई मतलब नहीं है। पेनल्टी भी बढ़ाई जानी चाहिए। 

with thanks : Navbharat Times

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